स्टोनेक्स स्टोन पोर्ट्रेट्स अहमदाबाद में: मार्बल, मेमरी & क्राफ्ट का संगम

अहमदाबाद, सितम्बर 2025: दुनिया के श्रेष्ठतम पत्थरों के संरक्षक के रूप में पहचाना जाने वाला स्टोनेक्स अहमदाबाद में स्टोन पोर्ट्रेट्स का अगला अध्याय प्रस्तुत किया है। यह विशेष आयोजन 19–20 सितम्बर 2025 को उर्मिला कैलाश ब्लैक बॉक्स, कनोरिया सेंटर फॉर आर्ट्स में हुआ, जहाँ आमंत्रित अतिथियों को भारत की प्राचीन कला परंपराओं में से एक का अद्वितीय और बहु-इंद्रिय अनुभव मिला। बेंगलुरु और चेन्नई में सराहना पा चुके स्टोन पोर्ट्रेट्स का यह सफर अब अहमदाबाद पहुँचा – एक ऐसा शहर जहाँ धरोहर, शिल्प और समकालीन कला का संगम होता है। इस कार्यक्रम में मेहमान ने अनुभवात्मक दुनिया में कदम रखा, जहाँ पत्थर स्मृति बन जाता है और संस्कृति, संगीत, तथा कथाएँ उसकी कहानी कहती हैं। अहमदाबाद संस्करण का आकर्षण – आई एम कॉटन – इस प्रस्तुति का मुख्य केंद्र है शिल्पकार शैक का नया इंस्टॉलेशन “आई एम कॉटन”।सुश्री प्राची भट्टाचार्य, सीईओ स्टोनएक्स आर्ट भी उपस्थित थे, उन्हों ने बताया की, अनुभव मात्र प्रदर्शनी से परे- स्टोन पोर्ट्रेट्स केवल एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि एक अनुभवात्मक यात्रा है। इसमें दर्शक न केवल पत्थर देखेंगे, बल्कि उसकी धरती की खुशबू महसूस करेंगे, हथेलियों में उसकी बनावट छुएंगे, संस्कृति की गूँज सुनेंगे और इतिहास से निर्मित दुनियाओं में कदम रखेंगे।
स्टोनेक्स ग्लोबल के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर श्री सुषांत पाठक ने कहा , “स्टोन पोर्ट्रेट्स के हर संस्करण में हमारा प्रयास रहता है कि पत्थर को नए सांस्कृतिक परिदृश्यों में स्थापित किया जाए। अहमदाबाद अपनी स्थापत्य धरोहर और जीवंत शिल्प परंपरा के साथ इस संवाद के लिए बेहद उपयुक्त है। यहाँ हमें क्षेत्रीय कारीगरों की कला को समकालीन प्रयोगों के साथ सामने लाने का अवसर मिल रहा है, जो पत्थर को सामग्री और स्मृति – दोनों रूपों में मनाने की हमारी प्रतिबद्धता को पुनः स्थापित करता है।”
अहमदाबाद संस्करण का आकर्षण – आई एम कॉटन – इस प्रस्तुति का मुख्य केंद्र है शिल्पकार शैक का नया इंस्टॉलेशन “आई एम कॉटन”। इसमें क्षणभंगुर रेशे को शाश्वत पत्थर में रूपांतरित करने का विरोधाभास प्रस्तुत किया गया है। कलाकार करारा एक्स्ट्रा मार्बल को – जो ऐतिहासिक रूप से पुनर्जागरण की पवित्रता और आधुनिकतावादी औपचारिकता का प्रतीक रहा है – कपास की गांठों और फलों जैसी आकृतियों में तराशते हैं। सतह पर प्राकृतिक असमानताओं को बनाए रखा गया है, जो कोमलता, हल्केपन और साँस लेने जैसी अनुभूति कराते हैं। लेकिन यह कोमलता वास्तविक नहीं, बल्कि पत्थर की कठोरता में गढ़ा गया भ्रम है। यह कृति श्रम, वस्तु-प्रवाह और स्पर्श की सौंदर्यता पर एक गहन चिंतन बन जाती है।
शिल्पकारों की विरासत का सम्मान- इस परियोजना से जुड़े कारीगर राजस्थान–गुजरात की सीमा क्षेत्रों से आते हैं, जो अपनी उन्नत पत्थरकारी परंपरा के लिए ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध हैं। तीसरी पीढ़ी तक चले आ रहे ये कलाकार संगमरमर के प्रति समर्पित हैं – वही पत्थर जिससे मंदिर, किले और मुग़ल कृतियाँ बनीं। उनकी कृतियाँ सदियों पुराने ज्ञान और समकालीन प्रयोगों का अद्वितीय मेल हैं।