भारतकी डीपटेक कंपनी सिंप्लिफोर्ज ने हिमालय में सबसे अधिक ऊंचाई पर ऑन-साइट 3D प्रिंटेड ढांचा बना कर एक नया ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित किया

17 अप्रैल 2025: डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण तकनीक के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक छलांग लगाते हुए सिंप्लिफोर्ज क्रिएशंस और आईआईटी हैदराबाद ने समुद्र तल से 11,000 फीट की ऊँचाई पर लेह में भारत की पहली ऑन-साइट 3D प्रिंटेड सुरक्षात्मक मिलिट्री स्ट्रक्चर का निर्माण सफलतापूर्वक किया है। भारतीय सेना के साथ मिलकर, प्रोजेक्ट प्रबल के तहत इसका निर्माण किया गया है। यह उपलब्धि विश्व की सबसे अधिक ऊंचाई पर इन-सीटू 3D कंस्ट्रक्शन प्रिंटिंग की रिकॉर्ड बनाने वाली घटना बन गई है। इसे अत्यधिक ऊँचाई और कम ऑक्सीजन वाली परिस्थितियों में पूरा किया गया है।
सिंप्लिफोर्ज क्रिएशंस के सीईओ ध्रुव गांधी ने इस अवसर पर कहा, “लेह के ऊंचाई और कम-ऑक्सीजन वाले वातावरण में इस परियोजना को क्रियान्वित करना हमारी टीम और मशीनों दोनों के लिए एक बहुत बड़ी ऑपरेशनल चुनौती थी। रोबोटिक प्रिंटर सिस्टम को 24 घंटों के भीतर सेट-अप और चालू किया गया, जो इसके फुर्तीलेपन और स्पीड को दर्शाता है। ऑक्सीजन की कमी ने बिजली प्रणालियों की कार्यक्षमता को प्रभावित किया, जो सामान्य मैदानों की तुलना में कम ऊर्जा आउटपुट दे रही थीं, साथ ही मानव दक्षता भी कम हो गई थी। कम नमी और ऊंची यूवी ने निर्मित सामग्री की मजबूती को चुनौती दी। इन सभी बाधाओं के बावजूद, हमने निर्धारित लक्ष्य को समय पर हासिल किया और 5 दिनों के रिकॉर्ड समय में एक मजबूत स्ट्रक्चर का निर्माण किया।”
सिंप्लिफोर्ज क्रिएशंस के मैनेजिंग डायरेक्टर हरि कृष्णा जेडीपल्ली प्ने कहा, “हम 2022 से ही एडिटिव कंस्ट्रक्शन की सीमाओं को आगे बढ़ा रहे हैं—चाहे वह भारत का पहला 3D प्रिंटेड पुल हो, दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड धार्मिक स्थल हो, या फिर भारतीय सेना के लिए स्थानीय सामग्री से बना पहला इन-सिटू 3D प्रिंटेड मेडिकल सुविधा केंद्र। प्रत्येक परियोजना एक बड़ी छलांग रही है, और लद्दाख का यह बंकर हमारे यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह अंतरिक्ष की तैयारी के लिए भविष्य का कदम भी है। “
आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर के.वी.एल. सुब्रमण्यम ने कहा, “इस परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू बेहद चुनौती भरी पर्यावरणीय स्थितियों में प्रदर्शन करने वाली विशेष सामग्री का विकास था। ऊंचाई, कम ऑक्सीजन, कम नमी और बड़े थर्मल वेरिएशन जैसी स्थितियों में काम करने के लिए इंफ्रा इनोवेशन के साथ-साथ सामग्री विज्ञान की श्रेष्ठता की भी आवश्यकता थी। हमारी टीम ने एक ऐसा कंक्रीट मिश्रण तैयार किया जिसे ऑन-साइट 3D प्रिंट किया जा सके और जो बेहतर मैकेनिकल परफॉर्मेंस दे सके और इसके साथ साथ टिकाऊपन और लचीलापन प्रदान करे। उपयोग से पहले, हमने आईआईटी हैदराबाद की उन्नत सुविधाओं में गहन परीक्षण किए, जिसमें स्थानीय रेत और पत्थरों का अध्ययन, मिश्रण की बहाव की विशेषताएं आदि शामिल थे। सिम्युलेटेड एनवायरनमेंटल दबावों में सामग्री के व्यवहार को समझने से ऑन-साइट उपयोग के लिए मिश्रण डिजाइन को अनुकूलित करने में मदद मिली। यही इनोवेशन इस संरचना की मजबूती को सुनिश्चित करने में आधार बना।”
आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर के.वी.एल. सुब्रमण्यम के नेतृत्व में, सिंप्लिफोर्ज क्रिएशंस और आईआईटी-हैदराबाद की टीमों ने विशेष रूप से ऐसी 3D प्रिंटिंग तकनीक विकसित की जो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण स्थितियों में काम कर सके। इस इनोवेशन के माध्यम से स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करते हुए एक फॉर्म-ऑप्टिमाइज़्ड सुरक्षात्मक बंकर के निर्माण को संभव बनाया गया है। इसे कुल चौदह घंटे की प्रिंटिंग अवधि में पूरा किया गया है।
प्रोजेक्ट प्रबल यह दिखाता है कि स्वदेशी तकनीक और एकेडमिक इंडस्ट्री सहयोग निर्माण विज्ञान की सीमाओं को कितना आगे बढ़ा सकते हैं। इस 3D प्रिंटेड बंकर की तैनाती न केवल भारत में पहली बार हुई है, बल्कि यह चुनौतीपूर्ण इलाकों में तेज़, ऑन-साइट, तैनात की जा सकने वाले बुनियादी ढांचे के लिए मार्ग भी प्रशस्त करता है, जिससे देश की रक्षा तैयारियों को और मज़बूती मिलती है।
यह ऐतिहासिक परियोजना इंजीनियरिंग इनोवेशन, सैन्य उपयोगिता और मेक इन इंडिया की भावना का संगम है। इसके साथ साथ यह भविष्य की बुनियादी संरचना के समाधानों के लिए भी रास्ता खोलता है।
अरुण कृष्णन, जो इस परियोजना में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और आईआईटी हैदराबाद में पीएचडी के छात्र भी हैं, ने कहा, “प्रोजेक्ट प्रबल की अवधारणा मेरे एमटेक प्रोग्राम के दौरान आई थी। कई टीमों और कंपनियों ने इस प्रकार के प्रयास किए थे, लेकिन लद्दाख की चरम परिस्थितियाँ एक बहुत बड़ी चुनौती रहीं। सिंप्लिफोर्ज क्रिएशंस और आईआईटी हैदराबाद के बीच की अद्वितीय तालमेल, तकनीकी गहराई, अनुकूलता और इनोवेशन पर केंद्रित दृष्टिकोण ने इसे संभव बनाया। हमने सिर्फ एक स्ट्रक्चर नहीं बनाया बल्कि हमने यह सिद्ध किया कि स्वदेशी, अत्याधुनिक तकनीक बेहद कठिन परिस्थितियों को पार कर सकती है और हमारे सशस्त्र बलों के लिए ठोस योगदान दे सकती है। इस स्ट्रक्चर ने सभी कठोर परीक्षणों को सफलतापूर्वक पार किया है।”
वह कहते हैं, “हम इस तकनीक का व्यावसायीकरण दूरस्थ क्षेत्रों के लिए करना चाहते हैं और इसे पृथ्वी से आगे—चंद्रमा और मंगल जैसे अंतरिक्ष आवासों तक ले जाना चाहते हैं। लद्दाख की चरम खुली परिस्थितियों में निर्माण ने हमें महत्वपूर्ण अनुभव और वैधता दी है, जो अंतरिक्ष के वातावरण में संचालन के लिए आवश्यक है। यह केवल निर्माण नहीं है—बल्कि हमारी स्पेस डीपटेक यात्रा की एक मजबूत नींव है।”