जलवायु परिवर्तन से विनाशकारी स्थिति पैदा हो रही, भारत के 85 प्रतिशत से अधिक जिले चक्रवात, बाढ़, सूखा और लू की आशंका से ग्रस्तः आईपीई ग्लोबल व एसरी इंडिया अध्ययन
-इस अध्ययन में 45 प्रतिशत भारतीय जिलों में अदला-बदली की प्रवृत्ति पाई गई जैसे पारंपरिक बाढ़ संभावित क्षेत्र, सूखा संभावित बन रहे, जबकि सूखा संभावित क्षेत्र, बाढ़ संभावित बन रहे हैं
नई दिल्ली, 06 सितंबर, 2024- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर आईपीई-ग्लोबल और एसरी इंडिया द्वारा आज जारी एक स्वतंत्र अध्ययन में चौकाने वाले रुख सामने आए हैं। इस अध्ययन के मुताबिक, 85 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिले बाढ़, सूखा, चक्रवात और लू संभावित हैं जिसमें से 45 प्रतिशत में अदला-बदली का रुख दर्ज किया जा रहा है। हाल के दशकों में जलवायु की चरम सीमा में बारंबारता, तीव्रता और अनिश्चितता भी चार गुना तक बढ़ी है। एक पेटेंटशुदा डेकाडल विश्लेषण का उपयोग कर इस अध्ययन में स्पैटियल एवं टेंपोरल मॉडलिंग के जरिए 1973 से 2023 तक की अवधि में चरण जलवायु घटनाओं की एक सूची तैयार की गई है और यह अनुसंधान इन घटनाओं की जटिलताओं और गैर रैखिक रुझान एवं स्वरूप खंगालते हुए एक विस्तृत जिला वार आकलन उपलब्ध कराता है। पिछले एक दशक में जलवायु की इन चरम स्थितियों में पांच गुना वृद्धि दर्ज की गई है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारतीय जिलों की कुल मिलाकर जलवायु जोखिम का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इस अध्ययन को एसरी इंडिया और इसकी साझीदार आईपीई ग्लोबल द्वारा क्लाइमेट टेक्नोलॉजी समिट के पूर्ण सत्र में लांच किया गया था जिसका शीर्षक था “जलवायु जोखिमों को घटना के लिए जीआईएस टेक्नोलॉजी का उपयोग।” दुनिया, जलवायु सप्ताह, एनवाईसी, अमेरिका के लिए कमर कस रही है जहां उद्योगपतियों, राजनेताओं के जलवायु कार्य प्रतिबद्धताओं पर चर्चा करने की संभावना है।
एसरी इंडिया के प्रबंध निदेशक अगेंद्र कुमार ने कहा, “जलवायु परिवर्तन झेलने की क्षमता निर्माण के लिए जलवायु अनुकूलन और शमन दृष्टिकोण दोनों का एक नाजुक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। चाहे वह नीतिगत हस्तक्षेप हो या प्रभावी नियोजन हस्तक्षेप की दृष्टि से प्रकृति आधारित समाधान, प्रौद्योगिकीय समाधान या सामाजिक समाधान हो, भावी जलवायु अनुमानों की समझ के लिए भूगोल प्रमुख घटक है। उन्नत स्पैटियल एनालिसिस टूल्स के साथ जीआईएस टेक्नोलॉजी और विभिन्न डेटा को एकीकृत करने के सामर्थ्य से इस भौगोलिक विज्ञान का दृष्टिकोण बनता है। जीआईएस टेक्नोलॉजी पहले से ही विभिन्न पर्यावरणीय पहल, आपदा झेलने के कार्यक्रमों, आधारभूत ढांचा, जनोपयोगी सेवाओं, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और स्मार्ट सिटीज़, राष्ट्रीय जल मिशन और स्वच्छ गंगा जैसे मिशनों का मुख्य आधार है। जलवायु जोखिम वेधशाला के साथ नाजुक क्षेत्रों के नक्शे, ऐप्स और डेटा जैसे जीआईएस-संचालित समाधानों से भागीदारों को जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रवार प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने और अधिक लचीले भविष्य का निर्माण करने में मदद मिलने की संभावना है।”
आईपीई ग्लोबल में जलवायु परिवर्तन एवं टिकाऊ व्यवस्था के प्रमुख और इस अध्ययन के लेखक अबिनाश मोहंती ने कहा,“प्रलयंकारी जलवायु चरण स्थिति के मौजूदा रुख से हर 10 में से 9 भारतीय चरम जलवायु घटनाओं का सामना कर रहे हैं और पिछली शताब्दी में तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का यह परिणाम है। अल नीनो गति पकड़ रहा है और पूरी दुनिया में इसकी समय से पहले उपस्थिति महसूस की जा रही है जिसमें भारत को लू से कहीं अधिक पैटर्न में चरम घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में अनियमित और निरंतर बारिश की वजह से केरल में भूस्खलन की घटना, गुजरात में बाढ़, ओम पर्वत के हिम की परत का गायब होना और भारी बारिश से शहरों की व्यवस्था पंगु होना, जलवायु परिवर्तन का एक प्रमाण है। हमारा अनुमान है कि 1.47 अरब से अधिक भारतीय वर्ष 2036 तक जलवायु की चरण स्थिति से अधिक प्रभावित होंगे और यह संख्या अपने चरम पर है। हाइपर-ग्रैनुलर रिस्क असेसमेंट को अपनाना और जलवायु जोखिम वेधशालाओं एवं आधारभूत जलवायु कोष की स्थापना एक राष्ट्रीय अनिवार्यता होनी चाहिए जिससे कृषि, उद्योग एवं वृहद स्तर की ढांचागत परियोजनाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन की अनियमितताओं बचाकर भारतीय अर्थव्यवस्था की सुरक्षा की जा सके।”
बिहार, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम में 60 प्रतिशत से अधिक जिलों में एक से अधिक चरण जलवायु घटनाएं दर्ज की जा रही हैं।
आईपीई ग्लोबल अध्ययन में पाया गया कि पूर्वी जोन के जिलों में अत्यधिक बाढ़ का अधिक खतरा है जिसके बाद पूर्वोत्तर और दक्षिण जोन में यह खतरा है। सभी भारतीय जिलों में अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं में 4 गुना बढ़ोतरी हुई है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, अनियोजित परिदृश्य और अस्थिर मानव केंद्रित गतिविधियां, इन जलवायु की चरण स्थितियों और इनकी संभावनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। इस अध्ययन में क्षेत्र विशेष जिले पाए गए हैं।
इस अध्ययन के तथ्यों से पता चलता है कि सूखे की घटनाओं विशेषकर कृषि एवं मौसमीय सूखे में दो गुना की वृद्धि और चक्रवात की घटनाओं में चार गुना की वृद्धि हुई है।
आईपीई ग्लोबल के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अश्वजीत सिंह ने कहा, “जहां भारत के प्रति व्यक्ति कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन वैश्विक औसत का एक तिहाई है और अमेरिका व चीन जैसे विकसित देशों का एक अंश है, यह जलवायु परिवर्तन की सबसे अधिक मार झेल रहा है। जलवायु ‘कोड रेड’ है और जोखिम कई गुना है जो पहले से मौजूद चुनौतियों को और खराब बनाता है। यूएन एसडीजी सूचकांक पर विश्व की प्रगति काफी अपर्याप्त रहने के साथ जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक आपातकाल है जोकि टिकाऊ विकास के साथ अटूट ढंग से जुड़ा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के लिए एसडीजी के लक्ष्यों के अनुपालन की बात करें तो भारत बहुत अच्छा काम कर रहा है। जलवायु के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को अनुकूलन से शमन की दिशा में अपने बजट पर ध्यान देना चाहिए। मौजूदा व्यवस्था में जलवायु लचीलापन के लिए कोष की कमी है जिससे दीर्घकाल में टिकाऊपन के लिए जोखिम उत्पन्न हो रहा है। भारत ने जलवायु के प्रभावों के चलते 2022 में 8 प्रतिशत जीडीपी नुकसान उठाया और संचयी पूंजी संपदा 7.5 प्रतिशत घटी। आईपीई ग्लोबल में हम यह महसूस करते हैं कि जलवायु संकट से निपटने के लिए आंदोलन खड़ा करने और जमीन पर कार्य करने की जरूरत है। हम ऐसी रणनीतियां विकसित करने और उन्हें लागू करने के लिए सतत प्रयासरत हैं जो पर्यावरण जोखिम को प्रतिस्पर्धी लाभ में तब्दील करें और यह अध्ययन इस बात का प्रमाण है कि हम नवप्रवर्तन को कैसे हाशिये से मुख्य धारा में ला सकते हैं जो भारत और ग्लोबल साउथ को जलवायु के अनुरूप तैयार करे। हमारा मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों के मध्य साझीदारी, नवप्रवर्तन में निवेश और समुदायों को सशक्त कर भारत एक टिकाऊ भविष्य की रचना के लिए इस विश्व की जलवायु समाधान की राजधानी बनने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जिससे लोगों और इस धरती के बीच सौहार्द का निर्माण हो सके।”
अदला-बदली के रुख की मैपिंग
इस अध्ययन में 45 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिलों में अदला बदली का रुख दर्ज किया गया है जैसे बाढ़ संभावित कुछ क्षेत्र अब सूखाग्रस्त क्षेत्र बन रहे हैं, जबकि सूखाग्रस्त क्षेत्रों के साथ उल्टी स्थिति है। बाढ़ से सूखाग्रस्त क्षेत्र की ओर रुख कर रहे जिलों की संख्या, सूखाग्रस्त से बाढ़ग्रस्त हो रहे जिलों से कहीं अधिक है। श्रीकाकुलम, कटक, गुंटूर, महबूबनगर, नलगोंडा और पश्चिम चंपारण सहित कई जिलों में बाढ़ से सूखाग्रस्त होने का रुख देखा गया है। वहीं, दक्षिण भारत विशेषकर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य सूखा की स्थिति में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज कर रहे हैं। बेंगलूरू शहर, अहमदाबाद, पुणे, पटना, प्रयागराज जिलों में सबसे अधिक अदला-बदली का रुख दर्ज किया जा रहा है। राजकोट, सुरेंद्रनगर, अजमेर, जोधपुर और औरंगाबाद जैसे जिलों में भी बाढ़ और सूखा दोनों देखा गया है। त्रिपुरा, केरल, बिहार, पंजाब, झारखंड राज्य के जिलों में सबसे अधिक अदला बदली का रुख दर्ज किया गया है।
इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन जिलों को हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किया गया, वहां लैंड-यूज़-लैंड-कवर में 65 प्रतिशत का बदलाव हुआ है। इन बदलते पैटर्न की वजह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन है जो उपयोग वाली भूमि की सतह में बदलाव, वनों की कटाई, मैनग्रोव और दलदली भूमि पर अतिक्रमण जैसे स्थानीय जलवायु कारकों से आया है।
इस अध्ययन में सिफारिश की गई है कि नेशनल रेज़िलिएंस प्रोग्राम के तहत राष्ट्रीय, राज्य, जिला और नगर के स्तर पर नीति निर्माताओं के लिए एक जोखिम सूचित निर्णय कारक टूलकिट के तौर पर एक क्लाइमेट रिस्क ऑब्जर्वेटरी (सीआरओ) की स्थापना की जाए और जलवायु संकट झेलने वाले महत्वपूर्ण आधारभूत ढांचे में सतत निवेश और स्थानीय स्तर पर जलवायु संबंधी कार्य में सहयोग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर क्लाइमेट फंड (आईसीएफ) की स्थापना की जाए। आईसीएफ को इस बाजार की क्षमता बढ़ाने की दिशा में लगाया जा सकता है जिससे यह महत्तम रिटर्न अवधि में बढ़े हुए जोखिम को अवशोषित कर सके।
आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया का यह अध्ययन इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण कि यह सभी भारतीय जिलों के लिए सूक्ष्म स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खतरनाक आकलन उपलब्ध कराता है। इसमें कहा गया है कि अत्यधिक स्थानीय स्तर पर समग्र जोखिम आकलन आज के समय की जरूरत है और महज वैश्विक मॉडलों पर निर्भरता प्रभावी नहीं होगी। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन की रिपोर्टिंग पर संयुक्त राष्ट्र की रूपरेखा को लेकर भारत की पिच पर जलवायु संबंधी जोखिमों की पहचान और उनका अनुमान लगाना, जलवायु रोधी जीवन, आजीविका, आधारभूत ढांचा और अर्थव्यवस्थाओं के लिए कार्य करने के वैश्विक आह्वान में से एक है।
पद्धति
यह अध्ययन अपनी तरह का भारत का जिला स्तरीय लू, चक्रवात, बाढ़ और सूखा जैसे तीव्र जलवायु घटनाओं का अध्ययन है। स्पैटियल एवं टेंपोरल मॉडलिंग के जरिए यह अनुसंधान इन घटनाओं की जटिलताओं और गैर रैखिक रुझान एवं स्वरूप खंगालते हुए एक विस्तृत जिला वार आकलन उपलब्ध कराता है। जलवायु आपदाओं की बारंबारता का आकलन करने के साथ ही यह अध्ययन संबंधित घटनाओं के पैटर्न की भी पड़ताल करता है और यह पता लगता है कि पिछले कुछ समय समय में इनका प्रभाव कितना तेज हुआ। यह अध्ययन इस देश के विभिन्न उप क्षेत्रों में जलवायु घटनाओं के रुख में परिवर्तन का भी परीक्षण करता है। एक पेटेंटशुदा डेकाडल एनालिसिस का उपयोग कर यह अध्ययन वर्ष 1973 से 2023 के बीच 50 वर्षों में चरम पर घटित जलवायु घटनाओं की सूची भी उपलब्ध कराता है।
आईपीई ग्लोबल के बारे में
आईपीई ग्लोबल लिमिटेड एक अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन है और यह सभी के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण करने के लिए विकास एजेंडा हेतु अनूठे समाधान उपलब्ध कराता है। भारत में मुख्यालय और बांग्लादेश, इथियोपिया, केन्या, फिलीपींस और ब्रिटेन में अंतरराष्ट्रीय कार्यालयों के साथ यह समूह विभिन्न क्षेत्रों में एकीकृत, अनूठी एवं उच्च गुणवत्ता की परामर्श सेवाओं की रेंज की पेशकश करता है। अपने ग्राहकों के एक विश्वसनीय साझीदार के तौर पर आईपीई ग्लोबल के पास अर्थशास्त्रियों, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, समाजशास्त्रियों, सार्वजनिक क्षेत्र के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, नगरीय नियोजनकर्ताओं, वास्तुकारों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, जलवायु विज्ञानियों, मौसम विज्ञानियों, परियोजना और कार्यक्रम प्रबंधकों की एक बड़ी टीम है जो विश्व की जटिल समस्याओं के स्पष्ट समाधान निकालने के लिए समर्पित है। पिछले 25 वर्षों के दौरान, आईपीई ग्लोबल ने पांच महाद्वीपों में 100 से अधिक देशों में 1000 से अधिक परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है। इस समूह के साझीदारों में बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय एजेंसियां, सरकारें, कंपनियां और गैर लाभकारी इकाइयां शामिल हैं जो टिकाऊ एवं समान वृद्धि के लिए विकास के एजेंडा को आगे बढ़ाने में लगी हैं।
एसरी इंडिया के बारे में
वर्ष 1996 में स्थापित एसरी इंडिया टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (एसरी इंडिया) भारत में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) सॉफ्टवेयर, लोकेशन इंटेलिजेंस और मैपिंग सॉल्यूशंस में अग्रणी कंपनी है जो परिचालन और कारोबारी निर्णयों में सुधार के लिए ग्राहकों के डेटा की अधिकतम संभावना का उपयोग सुनिश्चित करती है। इसने सरकार, निजी क्षेत्र, अकादमिक क्षेत्र और गैर लाभकारी क्षेत्रों में 6500 से अधिक संगठनों को आर्कजीआईएस से युक्त एंटरप्राइस जीआईएस टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराई है। इस कंपनी ने सरकारी संगठनों की जरूरत के हिसाब से जीआईएस सॉल्यूशन और डेटा की पेशकश करते हुए “इंडो आर्कजीआईएस” भी पेश किया है। एसरी इंडिया ने जीआईएस और लोकेशन इंटेलिजेंस आधारित सॉल्यूशंस उपलब्ध कराने के लिए साझीदार संगठनों के एक समृद्ध पारितंत्र के साथ गठबंधन किया है। नोएडा (दिल्ली एनसीआर) मुख्यालय वाली इस कंपनी के पास इस देश में करीब 10 लाख यूजर्स हैं। इसे 2021, 2022 और 2023 में ग्रेट प्लेस टु वर्क का प्रमाण पत्र मिला है। अधिक जानकारी के लिए कृपया www.esri.in पर विजिट करें।