‘गंगा माई की बेटियां’ में सिद्धू का किरदार निभा रहे शीज़ान खान कहते हैं, “मुझे लगता है इस शो की कहानी लोगों को यह याद दिलाएगी कि औरतें समाज की बनाई सीमाओं से नहीं, बल्कि अपनी हिम्मत और पहचान से जानी जाती हैं”

ज़ी टीवी का नया शो ‘गंगा माई की बेटियां’ दर्शकों के दिल को छू रहा है। गंगा माई (शुभांगी लाटकर) की इस प्रेरक कहानी में सिद्धू का किरदार अहम है, जिसे शीज़ान खान ने निभाया है। वह बाहर से सख्त और डराने वाला है, लेकिन अंदर से बहुत भावुक और अपनी मां से जुड़ा हुआ इंसान है। इस चर्चा में शीज़ान बताते हैं कि उन्होंने सिद्धू को कैसे जिया, कहानी से उनका जुड़ाव क्या है और क्यों उन्हें लगता है कि यह शो दर्शकों को छू जाएगा।
– ‘गंगा माई की बेटियां’ में हिम्मत, आत्म-सम्मान और परिवार की बातें हैं। ये बातें आपसे कितनी जुड़ती हैं?
मेरे लिए यह शो सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि जिंदगी की सच्चाई है। हिम्मत, सम्मान और रिश्ते, ये बातें हम सबकी जिंदगी में होती हैं। हमारे अपने लोग हमें जो भरोसा देते हैं, वही हमें मुश्किल वक्त में ताकत देता है। इस शो की सबसे खूबसूरत बात यही है कि एक मां और उसकी बेटियों के रिश्ते के ज़रिए इन भावनाओं को बहुत सादगी से दिखाया गया है। असल जिंदगी में भी कई औरतें ऐसी होती हैं जो बिना दिखावे के अपनी ताकत साबित करती हैं। यही बात मुझे इस शो से जोड़ती है और याद दिलाती है कि ऐसी कहानियां बहुत जरूरी हैं।
– इस कहानी में वाराणसी शहर कितना असर डालता है?
वाराणसी सिर्फ एक जगह नहीं है, बल्कि खुद एक किरदार है। यह शहर अपनी गलियों, घाटों और गंगा नदी के साथ कहानी को असली बनाता है। गंगा माई की जिंदगी में जैसे उतार-चढ़ाव हैं, वैसे ही यह शहर हर दिन नई शुरुआत करता है। यहां की संस्कृति, लोगों की सादगी और विश्वास कहानी को गहराई देते हैं। वाराणसी की आध्यात्मिकता शो में उम्मीद और ताकत दोनों लाती है।
– सिद्धू का किरदार सख्त होने के साथ-साथ भावुक भी है। इसमें आपको सबसे खास क्या लगा?
सिद्धू जैसा रोल मैंने पहले नहीं किया। वह बाहर से गुस्सैल और डराने वाला है, लेकिन अंदर से बहुत कोमल और अपनी मां से जुड़ा हुआ है। यही बात मुझे इस किरदार की ओर खींच लाई। उसकी दो अलग-अलग बातें, गुस्सा और मासूमियत, उसे बहुत दिलचस्प बनाती हैं। मुझे लगता है दर्शक भी उसे देखकर हैरान होंगे, क्योंकि वह डराता भी है और दिल छू भी लेता है। एक एक्टर के तौर पर ऐसे किरदार निभाना बहुत मज़ेदार होता है।
– आपने सिद्धू के बोलने और चलने के अंदाज़ के लिए कैसी तैयारी की?
मुझे पता था कि सिद्धू को बनारस का लगना चाहिए। इसलिए मैंने वहां के लोगों को ध्यान से देखा, उनकी बोली और चाल सीखी। बनारसी लहजा अपने आप में बहुत प्यारा और असली होता है। मैंने कोशिश की कि उसकी भाषा में वही सच्चाई दिखे। सबसे जरूरी बात यह थी कि वह अपनी मां के लिए कितना समर्पित है, यह दर्शकों को साफ दिखे। वह पढ़ा-लिखा नहीं है, लेकिन दिल से बहुत सच्चा इंसान है। उसकी मां ही उसकी दुनिया है और वही उसकी हर बात की वजह है।
– शो में समाज, त्याग और औरतों की मजबूती जैसे मुद्दे हैं। क्या आपको लगता है ये कभी-कभी भारी लगते हैं?
हां, कभी-कभी जब कहानी बड़े मुद्दों को छूती है तो वह भारी लग सकती है। लेकिन इस शो की खासियत यह है कि इसमें सब कुछ बहुत सरल और सच्चा है। यह कहानी किसी संदेश को ज़बरदस्ती नहीं देती, बल्कि रिश्तों के ज़रिए खुद-ब-खुद बात कहती है। इसमें वो पल हैं जो हर घर में महसूस किए जा सकते हैं। यही सादगी और सच्चाई इसे खास बनाती है। मुझे लगता है यही बात इसे लोगों के दिल तक पहुंचाएगी।