“जीआई एक्सीलेंस अवॉर्ड्स – गुजरात चैप्टर का आयोजन IPTSE और GNLU द्वारा पारंपरिक ज्ञान और वैश्विक पहचान को बढ़ावा देने पर रहा फोकस

गुजरात की संस्कृति और आर्थिक शक्ति को वैश्विक मंच पर ले जाने के उद्देश्य से विशेष सम्मेलन का आयोजन
गांधीनगर: “Leveraging GI for Economic Growth, Cultural Preservation, and Global Recognition” विषय पर कॉन्फरन्स का आयोजन गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (GNLU), गांधीनगर में किया गया। इसके साथ ही “GI Excellence Awards – Gujarat Chapter” का भी आयोजन हुआ।
IPETHICON एजुकेशनल एकेडमी (IPTSE) और GNLU द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य गुजरात के पारंपरिक उत्पादन इकोसिस्टम को बढ़ावा देना, कारीगरों को सशक्त बनाना और क्षेत्रीय उत्कृष्टता के लिए वैश्विक मान्यता प्राप्त करने में भौगोलिक संकेतकों (GI) की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। कार्यक्रम की शुरुआत में सुश्री पूर्वी पंड्या (निदेशक, IPTSE) ने स्वागत भाषण दिया। प्रो. (डॉ.) एस. शांताकुमार (निदेशक, GNLU) ने विशेष स्वागत भाषण दिया और डॉ. सुनील शुक्ला (महानिदेशक, एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया – EDII) ने मुख्य संबोधन प्रस्तुत किया। प्रोफेसर डॉ. उन्नत पंडित, कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स, डिज़ाइन्स एंड ट्रेडमार्क्स (CGPDTM), इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफिस ने मुख्य अतिथि के रूप में ऑनलाइन सहभागिता की। डॉ. निधि बुच (एसोसिएट प्रोफेसर, GNLU) ने उपस्थित सभी अतिथियों का अभिनंदन किया।

इस कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण “GI Excellence Awards – Gujarat Chapter” रहा, जिसके अंतर्गत गुजरात के विभिन्न पारंपरिक और GI-पंजीकृत उत्पादकों एवं कारीगरों को प्रमाणपत्र और सम्मान प्रदान किया गया। इन पुरस्कारों का उद्देश्य उन कारीगरों, किसान संगठनों और नवाचारशील उद्यमियों को प्रोत्साहित करना था, जिन्होंने गुजरात की विशिष्टता और विरासत को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने में योगदान दिया है।
इसके बाद “The Role of GI in Promoting Gujarat’s Unique Products” विषय पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। चर्चा में गुजरात के GI-पंजीकृत उत्पादों की सफलता की कहानियां, GI उत्पादों के विपणन और सुरक्षा में आने वाली चुनौतियाँ, तकनीक की भूमिका और ट्रेसबिलिटी जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। प्रमुख वक्ताओं में सुश्री हेतवी त्रिवेदी (कंसल्टेंट, WIPO, जिनेवा), डॉ. डी. के. वरू (प्रिंसिपल एवं डीन, कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर, जूनागढ़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी), डॉ. सी. एम. मुरलीधरन (पूर्व अनुसंधान निदेशक एवं डीन, पीजी स्टडीज, सरदारकृषिनगर दांतीवाड़ा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी), और डॉ. कपिल मोहन शर्मा (असिस्टेंट रिसर्च साइंटिस्ट, डेट पाम रिसर्च स्टेशन, मुंद्रा) शामिल रहे।
इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम के दौरान IPTSE और K&S Partners द्वारा भौगोलिक संकेतकों पर आधारित एक विशेष नॉलेज रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया। “GI Knowledge Series” के अंतर्गत आयोजित दोनों पैनल चर्चाओं में गुजरात के GI-पंजीकृत उत्पादों, विपणन में आने वाली चुनौतियों, तकनीकी समाधान, ट्रेसबिलिटी और नीतिगत वित्तीय सशक्तिकरण पर गहन चर्चा की गई।
यह पूरा कार्यक्रम GUJCOST, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, APEDA, EDII और SIDBI जैसी अग्रणी संस्थाओं के सहयोग तथा Ericsson के इंडस्ट्री पार्टनर के रूप में सहभागिता से अत्यंत सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। ऐसे आयोजन गुजरात के GI इकोसिस्टम को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने और राज्य के हस्तशिल्प, कृषि एवं कारीगर आधारित उद्योगों में नई ऊर्जा भरने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
एक अन्य पैनल चर्चा “Leveraging GI for Global Markets through GI Policy, Protection & Financial Empowerment to MSME Artisans” विषय पर भी आयोजित की गई। इसमें वर्तमान GI नीतियों एवं उनके क्रियान्वयन की चुनौतियों, सरकारी व कानूनी सहयोग की भूमिका, तथा किसानों, कारीगरों और उत्पादकों को वित्तीय सशक्तिकरण व न्यायसंगत लाभ दिलाने के विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।
इस सत्र में वक्ता के रूप में श्री माटेओ ग्रान्यानी (लीगल ऑफिसर, लिस्बन रजिस्ट्री, डिपार्टमेंट फॉर ट्रेडमार्क्स, इंडस्ट्रियल डिज़ाइन्स एंड जियोग्राफिकल इंडिकेशंस, ब्रांड्स एंड डिज़ाइन्स सेक्टर, वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइज़ेशन – WIPO), प्रो. (डॉ.) प्रबुद्ध गांगुली (सीईओ, विज़न-इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स – Vision-IPR, मुंबई), श्री नरेश बबूता (जनरल मैनेजर, स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया – SIDBI, अहमदाबाद), और सुश्री मल्यश्री श्रीधरन (एसोसिएट पार्टनर, LexOrbis) आदि शामिल रहे।
इस आयोजन में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों के बीच सार्थक ज्ञान-विनिमय हुआ। यह सम्मेलन भारत के GI इकोसिस्टम को सशक्त बनाने तथा गुजरात के विशिष्ट हस्तशिल्प और कृषि उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ। ऐसे मंच भारत की पारंपरिक धरोहर को कानूनी संरक्षण और आवश्यक मान्यता दिलाने के लिए अनिवार्य होते जा रहे हैं — और गुजरात इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।